पत्रकारिता का लक्ष्य समाज की पक्षधरता- प्रो. बल्देव भाई शर्मा

पटना, 13 मई। पत्रकारिता कभी निष्पक्ष नहीं हो सकती। एक प्रकार से पत्रकार जनता के पक्षकार हैं। अंतिम पंक्ति के लोगों का लक्ष्य लेना एक पत्रकार का कर्तव्य होता है। समाज व लोक का पक्ष ही पत्रकारिता का पक्ष है। उक्त विचार कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बल्देव भाई शर्मा ने व्यक्त किए।
पटना के बी.आई.ए. सभागार में ‘राष्ट्र के नवोत्थान में मीडिया की भूमिका’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन विश्व संवाद केंद्र ने किया था। आद्य पत्रकार देवर्षि नारद स्मृति कार्यक्रम के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता प्रो. शर्मा ने जनसत्ता के पूर्व संपादक प्रभात जोशी को उद्धृत करते हुए कहा कि पत्रकारोें की एक पाॅलिटिकल लाइन होनी चाहिए। उनकी कोई पार्टी लाइन नहीं होनी चाहिए। पक्षधरता पर उन्होंने महान कवि दिनकर की रचना का उल्लेख किया- “जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनका भी अपराध।”
प्रो. शर्मा ने कहा कि चिंतनक-मनन पत्रकारिता का मूल है। इस लिहाज से देश की स्वाधीनता के बाद हमें जो परिष्कार करना चाहिए था, वह हमने नहीं किया। औपनिवेशिक व्यवस्था ने हमें आत्महीनता के गर्त में धकेल दिया। आत्मबोध के उत्थान का कार्य नहीं हुआ। यह सार्वकालिक विषय है। उन्होंने कहा कि हमारे मान बिंदुओं के बारे में गलत धारणा है। जैसे हमारे ऋषियों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टि से रचे गए शास्त्रों को मिथ कह दिया गया। मिथ का अर्थ कल्पना यानी सत्य से दूर होना। संविधान में तीन स्तंभों का जिक्र है। मीडिया को लोकतंत्र के चैथे स्तंभ के रूप में समाज से मान्यता दी है। यह बहुत बड़ा सम्मान है। इसलिए मीडिया राष्ट्र उन्नयन का माध्यम होना चाहिए। पत्रकारिता केवल बौद्धिक नहीं, नैतिक माध्यम भी है।
ब्रिटिश इतिहासकार जॉन बरो की पुस्तक- ‘ए हिस्ट्री ऑफ हिस्ट्रीज’ की चर्चा करते हुए प्रो. शर्मा ने कहा कि जो अंग्रेज कभी हमें सपेरों की धरती कहते थे और इंडियंस एंड डॉग्स आर नॉट अलाउड की तख्ती लगवाते थे, उन्हीं अंग्रेजों की वर्तमान पीढ़ी अब यह कह रही कि वैश्विक अराजकता को भारतीय मूल्यों द्वारा ही सुलझाया जा सकता है, क्योंकि भारत विश्व कल्याण की दृष्टि से सोचता है। हमारी पत्रकारिता भी ऐसी ही है। यह यूरोपीय ढांचे का मीडिया नहीं है।
इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकांत ओझा ने कहा कि हमारे यहां भाष्यकारों की परंपरा रही है। यही कारण है कि हमारी चिंतन की मौलिकता कभी कालबाह्य नहीं होती। गांधी का ‘हिंद स्वराज’ पढ़ने पर ज्ञात होता है कि वे उपनिषद शैली में अपनी बात रखते थे। राष्ट्र के नवोत्थान का सूत्र वहीं छुपा है।
स्वागत संबोधन में विश्व संवाद केंद्र के सचिव डॉ. संजीव चैरसिया ने कहा कि राष्ट्रीय विचार की पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने का प्रयास विश्व संवाद केंद्र, बिहार द्वारा विगत 24 वर्षों से अनवरत किया जा रहा है। पत्रकारों को सम्मान देना और समयानुकूल विषयों पर पत्रकारीय संगोष्ठी का आयोजन करना एक महत्वपूर्ण पहल है। धन्यवाद ज्ञापन विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष श्रीप्रकाश नारायण सिंह ने किया। कार्यक्रम में बिहार की पत्रकारिता पर केन्द्रित स्मारिका ‘प्रत्यंचा’ का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर पत्रकारों का सम्मान भी किया गया।
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