विहिप की मांग मंदिरों का सरकारीकरण नहीं, समाजीकरण हो – डॉ. सुरेंद्र जैन

नई दिल्ली. तिरुपति मंदिर में प्रसादम् को अपवित्र करने से आहत विश्व हिन्दू परिषद ने कहा कि अब मंदिरों का सरकारीकरण नहीं, समाजीकरण होना चाहिए. विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि इस दुर्भाग्यजनक महापाप की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कर दोषियों को कठोरतम सजा होनी चाहिए. साथ ही भगवान के भक्तों को समाविष्ट कर ऐसी व्यवस्था भी सुनिश्चित करनी चाहिए, जिसमें इस तरह के षड्यंत्र का कोई संभावना न रह सके.
उन्होंने कहा कि तिरुपति बालाजी मंदिर से मिलने वाले महाप्रसाद की पवित्रता के संबंध में आस्थावान हिन्दुओं की अगाध श्रद्धा होती है. दुर्भाग्य से इस महाप्रसाद को निर्माण करने वाले घी में गाय व सूअर की चर्बी तथा मछली के तेल की मिलावट के अत्यंत दुखद और हृदय विदारक समाचार आ रहे हैं. पूरे देश का हिन्दू समाज आक्रोशित है और हिन्दुओं का क्रोध अलग-अलग रूप में प्रकट हो रहा है.
प्रेस वार्ता में कहा कि तिरुपति बालाजी मन्दिर का संचालन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड करता है. वहां केवल महाप्रसाद निर्माण के मामले में ही हिन्दू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया. अपितु, हिन्दुओं द्वारा अत्यंत श्रद्धा भाव से अर्पित की गई देव राशि (चढ़ावा) के सरकारी अधिकारियों व राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग के भी कष्टकारी समाचार मिलते रहते हैं.
कुछ दिन पूर्व ही समाचार आया था कि राजस्थान की गत कांग्रेस सरकार ने जयपुर के प्रसिद्ध श्री गोविंद देव जी मन्दिर से 9 करोड़ 82 लाख रुपये ईदगाह को दिए थे. राज्य सरकारें मंदिरों की संपत्ति व आय का निरंतर दुरुपयोग करती रहती हैं तथा उनका उपयोग गैर हिन्दू या कहें कि हिन्दू विरोधी कार्यों में करती रही हैं.
डॉ. जैन ने कहा कि हमारे देश में संविधान के सर्वोपरि होने की दुहाई तो बार-बार दी जाती है, परंतु दुर्भाग्य से हिन्दुओं की आस्थाओं के केंद्र मंदिरों पर विभिन्न सरकारें अपना नियंत्रण स्थापित कर हिन्दुओं की भावनाओं के साथ सबसे घृणित धोखाधड़ी संविधान की आड़ में ही कर रही हैं. जो सरकारें संविधान की रक्षा के लिए निर्माण की जाती हैं, वे ही संविधान की आत्मा की धज्जियां उड़ा रही हैं.
अपने निहित स्वार्थ के कारण मंदिरों का अधिग्रहण कर संविधान की धारा 12, 25 व 26 का उल्लंघन कर रही हैं. जबकि, न्यायपालिका ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि सरकारों को मंदिरों के संचालन और उनकी सम्पत्ति की व्यवस्था से अलग रहना चाहिए.
क्या स्वतंत्रता प्राप्ति के 77 वर्ष बाद भी हिन्दुओं को अपने मंदिरों का संचालन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती? अल्पसंख्यकों को तो अपने धार्मिक संस्थान चलाने की अनुमति है, परंतु हिन्दू को यह संविधान सम्मत अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? यह सर्वविदित है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को लूटा और नष्ट किया था. अंग्रेजों ने चतुराई पूर्वक उन पर नियंत्रण स्थापित करके निरंतर लूटने की प्रक्रिया स्थापित कर दी. दुर्भाग्य है कि यह व्यवस्था अभी भी चली आ रही है.
तमिलनाडु में 400 से अधिक मंदिरों पर कब्जा करके वहां की हिन्दू विरोधी सरकार मनमानी लूट कर रही है और न्यायपालिका के कहने के बावजूद खुलेआम हिन्दुओं की आस्था और सम्पत्ति पर डाका डाल रही है. कई बड़े मन्दिर विशाल चढ़ावे के बावजूद इतने घाटे में दिखाए जाते हैं कि उनकी पूजा सामग्री तक की उचित व्यवस्था नहीं हो पाती. केरल के कई मंदिरों में इफ्तार पार्टी दी जा सकती है, लेकिन हिन्दुओं के धार्मिक कार्यक्रमों के लिए भारी शुल्क देना पड़ता है.
डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि तिरुपति बालाजी व अन्य स्थानों पर की जा रही अनियमितताओं के कारण अब हिन्दू समाज का यह विश्वास और दृढ़ हो गया है कि अपने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराए बिना उनकी पवित्रता को पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता.
स्थापित मान्यता है कि हिन्दू मंदिरों की संपत्ति व आय का उपयोग मंदिरों के विकास व हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए. “हिन्दू आस्था की सम्पत्ति हिन्दू कार्यों के लिए”.
विश्व हिन्दू परिषद का सभी सरकारों से आग्रह है कि उनके द्वारा अवैधानिक और अनैतिक कब्जों में लिए गए सभी मंदिरों को अविलंब मुक्त करके हिन्दू संतों व भक्तों को एक निश्चित व्यवस्था के अन्तर्गत सौंप दें. व्यवस्था का प्रारूप पूज्य संतों ने कई वर्षों के चिंतन मनन व चर्चा के बाद निर्धारित किया है. इस प्रारूप का सफलतापूर्वक उपयोग कई जगह किया जा रहा है. हमें विश्वास है कि परस्पर विमर्श से ही हमारे मंदिर हमको वापस मिल जाएंगे और हमें व्यापक आंदोलन के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा.
उन्होंने घोषणा की कि अभी हम सभी राज्यों के राज्यपालों के माध्यम से सरकारों को धरने प्रदर्शन करके ज्ञापन देंगे. यदि सरकारें हिन्दू मंदिरों को समाज को वापस नहीं करेंगी तो हम व्यापक आन्दोलन करने को विवश होंगे. हम मंदिरों का “सरकारीकरण नहीं समाजीकरण” चाहते हैं, तभी हिन्दुओं की आस्था का सम्मान होगा.

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