पटना (विसंके), 26 मार्च। सनातन धर्म में धारण करने योग्य वस्तु को ही धर्म कहा गया है। राजा के कत्र्तव्य के लिए राज-धर्म, व्यक्ति के कत्र्तव्य के लिए सामाजिक धर्म और राष्ट्र के प्रति नागरिक के कत्र्तव्य के लिए राष्ट्र धर्म की परिकल्पना सनातन पद्धति में की गई है। तुलसी के रामराज्य से लेकर गांधी जी के हिन्द स्वराज्य तक सबमें कत्र्तव्यों को ही सर्वोपरि माना गया गया है। व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति, राजा का प्रजा के प्रति तथा नागरिक का राज्य के प्रति क्या कत्र्तव्य होना चाहिए, ये सब हमारे शास्त्र में बड़ी सहजता से बताया गया है। उक्त बातें बिहार विधान सभा के सभापति विजय कुमार सिन्हा ने आज विधान सभा में विधायकों को संबोधित करते हुए कही।
सप्तदश बिहार विधान सभा के आज के अंतिम सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद के 75 वर्ष के सफर पर नजर डालें तो हम पायेंगे कि हमने इस दौरान अधिकारों की बात तो की पर कत्र्तव्य की डोरी हाथों से छोड़ दी। अपनी चिंता ज्यादा की देश और समाज के प्रति हमारा परिदृश्य थोड़ा धुंधला रहा। किन्तु आज जब हम अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो इस अमृत काल में हमें सबका साथ-सबका विकास तथा सबका विश्वास और सबका प्रयास का मूलमंत्र के साथ भारत को स्वर्णिम भारत बनाने के साध्य के लिए कत्र्तव्य का दीप जलाते हुए चलना है।
भारत भक्ति के सूत्र में बंधकर आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, पुरातन पहचान तथा भविष्य के उत्थान की नई दृष्टि के साथ एकजुट होकर बढ़ना है। इसके लिए हम सबको व्यक्ति, समाज, राज्य और राष्ट्र के प्रति अपने कत्र्तव्यों का सम्यक निर्वहन करना है।
अपने संबोधन के अंत में उन्होंने 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा कहे गये कविता ‘यही समय है’ को भी दोहराया।
आज उन्होंने 17 फरवरी को आयोजित प्रबोधन सत्र के उद्घाटनकत्र्ता लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला द्वारा लाये गये संविधान के मूल प्रति भी सभी विधायकों को भेंट स्वरूप प्रदान किया।
