बातचीत – रविन्द्र प्रियदर्शी (पटना महानगर अध्यक्ष, वनवासी कल्याण आश्रम)
मुद्दा – वनाधिकार
1.वनाधिकार का मुद्दा क्या है?
उत्तर :- यह बहुत ही पुराना मुद्दा है । भारत एक औपनिवेशिक देश की तरह था । सबसे पहले ‘लार्ड कार्नवालिस’ ने 1800 ईस्वी के लगभग , उस समय के किसानों को को एक तरह से पट्टा दिया गया , जिसे रैयती अधिकार कहा गया । लेकिन यह सिर्फ कृषि योग्य भूमि तक ही सीमित रह गया । वह लोग ( अंग्रेजी शासन ) वन क्षेत्र के बारे में बिल्कुल गौण रह गए । इसके पीछे उनकी मंशा सही नहीं थी । उन लोगों ने जंगलों को संसाधन के तौर पर देखा और इसका दोहन बहुत बुरे स्तर पर किया । जंगलों की कटाई बड़े पैमाने पर हुई। इसके ख़िलाफ़ जंगलों में रह रहे आदिवासी समुदाय के लोगों ने आवाज़ उठाई , पर उनके आंदोलन में वह दम नहीं था जो दूसरे क्रांतिकारियों में थी । उन समुदाय की माँग यह थी कि जंगलों के वस्तुओं पर उनका अधिकार हो ।
फिर 2006 में अटल बिहारी वाजपेयी के सरकार के समय “जनजाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006” नाम का बिल संसद से पास हुआ । इसकी माँग वर्षो से चली आ रही थी , लेकिन यह 2006 में संभव हुआ । इसमें जो प्रमुख बात है वह यह है :-
ऐसे जनजाति सदस्य या गैर जनजाति सदस्य जो तीन पीढ़ियों से वन प्रदेश में रह रहे हैं । एक पीढ़ी की मान्यता 25 साल मानी गयी । उनकोवन क्षेत्र का अधिकार मिले। इसके लिए यह एक्ट बना ।
2.वनों में रहने वालों को ही वन अधिकार, का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :- वन अधिकार का तात्पर्य यह है कि वह परिवार या समुदाय जो वन में तो रह रहें हैं, लेकिन अपने इस्तेमाल के लिए वह लड़की नहीं काट सकते है। विभिन्न प्रकार की वस्तुएं, जैसे – चिरायता, महुआ इत्यादि। अर्थात जो वस्तुएं जंगलों से मिलते है उन सभी चीज़ों को वनवासी लोग न तो संग्रह कर सकते है , और न ही बेच सकते हैं। और आज के दिन में महुआ को चुन कर रख लें तो वह कानूनन अपराधी घोषित हो जाएगा।
दूसरा, जलस्रोत। इससे खेती की सिंचाई या फिर वह खेती कर रहे है उसका उपज़, इन चीज़ों का भी अधिकार उनके पास नहीं है । इन सभी परेशानियों के कारण उनका जीवनयापन खतरे में आ गया । इन सभी अधिकारों के माँग के लिए जो आवाज़ उठी , उसी को वन अधिकार का मुद्दा कहा गया ।
3.वनाधिकार के मुद्दे के बारे में वनवासी कल्याण आश्रम के तरफ से क्या कदम उठाए गए?
उत्तर :- वनाधिकार के मुद्दे के लिए 2006 में अधिनियम बना। जिसमें उस अधिनियम की विधि भी बताई गई कि यह कैसे लागू होगा। इसके लिए पहले ग्राम सभा की कल्पना की गई। जिसमें उस वन प्रदेश में कम से कम 15 व्यक्तियों की सभा हो उसे ग्राम सभा मानी जाएगी। ग्राम सभा में लोग तय करेंगे कि हम किस प्रदेश में रह रहे हैं, उसके बाद अपना दावा प्रखंड स्तर पर प्रखंड अधिकारी के पास रखेंगे। जिसमें वह अपनी माँग रखेंगे कि आप हमें स्थान प्रदान करें और हमारे अधिकार हमें दीजिये। इस माँग में एक नियम यह था कि ग्राम सभा के दो बुजुर्ग जिनकी उम्र 60 वर्ष के ऊपर हो, उनका हस्ताक्षर जरूरी था। गहन जाँच होने के बाद उन्हें तमाम जरूरी कागज़ जारी कर दिए जाते हैं । कुल मिला कर उनकी पहचान इससे तय हो गयी ।
यह चीज़ इसलिए जरूरी था कि विस्थापन ( सरकारी या बड़े प्रोजेक्ट शुरू होने पर वहाँ के वनवासियों को वहाँ से विस्थापित कर दिया जाता है, जैसे – टिहरी डैम के निर्माण के वक़्त हुआ था ) के बाद पुनर्वास में सबसे अधिक दिक्कत उत्पन्न होती थी। सरकारी कर्मचारी उनसे सरकारी कागजात के माँग करते हैं। जो उनके पास प्रायः नहीं होते हैं।
इन तमाम प्रक्रिया की जानकारी हम अपने आश्रम ( वनवासी कल्याण आश्रम ) के द्वारा वन प्रदेश में रह रहे लोगों को देते हैं । उनको उनके अधिकारों के प्रति सचेत करते हैं। यह स्थिति आज भी बनी हुई है। पुनर्वास आज के समय भी छलावा है। आए दिन हम इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए विभिन्न वनवासी प्रदेशों में कार्यशाला आयोजित करवाते रहतें है।
वनवासी कल्याण आश्रम 1952 से अनवरत इसी कार्य मे प्रयासरत है । इनके सर्वागींण विकास के लिए। दो तीन मुद्दे है जो प्रमुख रूप से हैं। पहला शिक्षा का कार्यक्रम , इस कार्यक्रम के तहत हम लोगों का एकल विद्यालय है , छात्रावास है ।
खेल का कार्यक्रम – हमारे आश्रम के मदद से बहुत से खिलाड़ी वन प्रदेश से निकल राष्ट्रीय स्तर तक गए हैं ।
श्रद्धा जागरण – धर्म से जुड़ी कार्यक्रम जिसमें अपने हिन्दू धर्म के बारे में उनको जानकरी दिया जाता है । लेकिन हम धर्मांतरण नहीं करवाते है
4.वर्तमान में कौन-कौन सी परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है?
उत्तर :- यह सभी कार्यक्रम वर्षों से अनवरत चल रहे हैं। पटना शहर में भी एकल विद्यालय औऱ छात्रावास खोलने पर विचार हो रहा है।