पटना, 11 फरवरी। संघ का स्वयंसेवक स्वंय की प्रेरणा से काम करता है। संगठन किसी के भय, प्रतिक्रिया
व प्रतिरोध में काम नहीं करता। भारत की संस्कृति विविधता में एकता की बात नहीं बल्कि एकता की
विविधता की बात करती है। उक्त विचार राजेन्द्र नगर स्थित शाखा मैदान में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक डाॅ. मोहन भागवत ने व्यक्त किये। संघ कार्य का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए माननीय मोहन भागवत ने कहा कि बाहर के व्यक्ति को
लगता है कि संघ का कार्य अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए हो रहा है लेकिन संघ कार्य को ध्यान में रखकर
जो विचार करता है उसे इस कार्य का रहस्य समझ में आता है। सम्पूर्ण विश्व में भारत की जयकार हो और
भारत सामथ्र्यवान तथा परम वैभव से पूर्ण हो, इस निमित्त ही संघ का कार्य है। स्वयंसेवकों के व्यवहार से
संघ को लोग जानते हैं। संघ का कार्यकर्ता प्रमाणिक रीति से, समर्पण भाव से कोई कार्य करता है।
इसलिए आज संघ से समाज की अपेक्षा बढ़ी है। समाज का कोई ऐसा अंग नहीं जहां स्वयंसेवकों ने कार्य
प्रारंभ नहीं किया है और कुछ दशकों में ही वहां प्रभावशाली परिवर्तन खड़ा नहीं किया है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि महापुरूषों के प्रयास से देश में स्वतंत्रता आई थी, लेकिन उसका परिणाम
क्या निकला ? डाॅ. हेडगेवार ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। कार्यक्रमों में भाषण देना, स्वदेशी के
निमित्त कार्य करना, पत्रक निकालना यह सब कार्य करके उन्होंने समझ लिया था कि इससे स्थाई स्वतंत्रता नहीं प्राप्त होनेवाली। अंत में उन्होंने संघ की स्थापना की। संघ का स्वयंसेवक स्वयं की प्रेरणा से निःस्वार्थ भाव से कार्य करता है। उसके कार्य का उद्देश्य समाज को स्वस्थ करना है। शाखा में आकर साधना भाव से काम करना और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करना ही उसका दैनिक कर्तव्य है। और इसी से देश को
परम वैभव बनाने वाला समाज निर्मित होगा।
उन्होंने बताया कि देश के सामान्य आदमी के उन्नति से ही राष्ट्र की उन्नति संभव है। जबतक किसी देश के सामान्य व्यक्ति की उन्नति नहीं होती तबतक उस राष्ट्र की उन्नति नहीं हो पाती। विश्व का इतिहास भी इस बात की ओर इशारा करता है। उन्होंने स्वयंसेवकों का आह्वान करते हुए कहा कि वे जन सामान्य के उन्नति के लिए सन्नध हों और घर-घर जाकर राष्ट्र प्रेम की भावना को जागृत करें।