भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस, चेटीचंद, सादगीपूर्ण और समर्पित भाव से पटना के बुद्धा कॉलोनी स्थित झूलेलाल मंदिर में मनाया गया. झूलेलाल सिंधी समाज के आराध्य देव हैं. प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल द्वितीया को उनका अवतरण दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष यह उत्सव 10 अप्रैल को मनाया गया. सिंधी समाज के वरिष्ठ सदस्य और बिहार राज्य खुदरा व्यावसायी संघ के पूर्व अध्यक्ष रमेशचंद तलरेजा ने बताया कि झूलेलाल सिंधियों के एक लोककथात्मक देवता है. झूलेलाल को वरुण देव का अवतार माना जाता है. चित्रों में इन्हें नदी के बीच में कमल के फूल पर बैठे और चांदी की मछलियों (पल्ला मछली) के जोड़े से घिरे हुए दिखाया जाता है. पल्ला मछली धारा के विपरीत तैरती है. इनके बारे में कथा है कि विक्रम संवत् 1007 में पाकिस्तान में सिंध प्रदेश के ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक एक क्रूर मुस्लिम राजा था । शासक मिरख अपनी प्रजा पर बर्बरता करता था. उसने कई लोगों को डरा-धमकाकर इस्लाम स्वीकार करवाया।उसके अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए लोगों ने सिंधू नदी के किनारे 40 दिनों तक पूजा-पाठ, जप, व्रत आदि किए थे । भक्तों की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर मछली पर भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और उन्होंने भक्तों से कहा कि वह 40 दिन बाद सिंधी समाज में जन्म लेंगे. इसके ठीक 40 दिन बाद चैत्र शुक्ल द्वितीया पर उनके बताए स्थान पर एक चमत्कारी बालक ने श्रीरतनराय लोहाना के घर जन्म लिया, यही भगवान झूलेलाल कहे गए ।
भगवान झूलेलाल ने दिखाया चमत्कार
सिंधी लोक कथाओं के अनुसार जब इसके बारे में मिरखशाह को पता चला तब उसने अपने एक मंत्री को झूलेलाल को देखने के लिए भेजा. झूलेलाल ने उसे कुछ ऐसा अहसास करवाया जैसे वे 16 साल के युवक की तरह हाथ में तलवार लिए आगे बढ़ रहे हैं ।
उस बच्चे को ऐसा देखकर मंत्री डर गया और मिरखशाह के पास गया।झूलेलाल की ख्याति बढ़ने लगी थी. एक दिन मिरखशाह ने झूलेलाल को गिरफ्तार करना चाहा लेकिन अचानक से पूरे महल के चारों तरफ पानी भर गया और बीच में आग लग गई. भगवान झूलेलाल ने मिरखशाह को हिंदूओं पर अत्याचार न करने की चेतावनी दी. मिरखशाह डर गया और उसने वादा किया कि हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही एक तरह से देखेगा.
कैसे मनाते हैं पर्व
चेटीचंद पर बड़े ही सादगीपूर्ण तरीके से मनाया जाता है । भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाते हैं. झूलेलाल सिंधी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें सिंधीसमाज का ’ईष्ट देव’ कहा जाता है। इस बार 10 अप्रैल को यह त्योहार मनाया गया अखिल भारतीय सिंधी बोली और साहित्य ने इस दिन ‘सिंधीयत डे’ घोषित किया है.
चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं जिसे लौंग,छोटी इलाइची, मिश्री से सजाया जाता है और उसे चारो तरफ से सिंदूर का टीका लगाकर सजाया जाता है. इसके साथ ही आटे का एक दीया भी बनाया जाता है।
शोभा यात्रा में ‘छेज’ (जो कि गुजरात के डांडिया की तरह लोकनृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं. ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है. शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है.
पटना के कार्यक्रम में बिहार सिंधी समाज के अध्यक्ष अशोक लखमानी, पूर्व अध्यक्ष म़नोहर मदान ‘मदनलाल मदान, चंद मधान, अनिल राजवानी, प्रेम तोलानी, कपील भागचंदानी एवं बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थी. सिंधी समाज की महिलाओं ने पल्लव पपा कर देश ,समाज एवं परिवार की सुख शांति के लिए अरदास की। कार्यक्रम में कक्षा 5 के छात्र अमर लखवानी ने तबला वादन से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया.