भारतीय चिंतन को समय-समय पर समाज के दलितों ने निर्णायक दिशा दी है। भारतीय समाज की यह विशेषता रही है कि वह समाज के सभी वर्गों से मार्गदर्शन प्राप्त करता रहा है। भारतीय वागंमे के तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ- रामायण, महाभारत और संविधान हैं। इन तीनों के रचनाकार महर्षि वेदव्यास, महर्षि वाल्मीकि और बाबा साहेब भीमराव अंबेदकर दलित थे। बाबा साहेब ने अपने सभी सभाओं में हमेशा दलितों की समस्याओं को केंद्र में रखा किंतु उन्होंने संविधान में कहीं भी दलित शब्द का प्रयोग नहीं किया। उक्त विचार बिहार के महामहिम राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने आईसीपीआर के सहयोग से चिति और पटना विश्वविद्यालय के पीएम एंड आईआर विभाग द्वारा आयोजित ‘दलित आख्यान एवं भारतीय दर्शन’ विषयक तीन दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित करते हुए व्यक्त की।
पटना के ए.एन. सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के समापन सत्र को संबोधित करते हुए महामहिम राज्यपाल ने कहा कि देश का संविधान भारतीय दर्शन, संस्कृति और साहित्य का सार है इसमें समाज के कमजोर और अभिवंचित वर्गों को समाजिक संरक्षण प्रदान कर उन्हें समान अवसर प्रदान करने का मौका दिया गया है। भारतीय संस्कृति और भारतीय संविधान हमें सामाजिक असमानता, अस्पृश्यता और किसी भी नकारात्मकता को प्रोत्साहित करने की अनुमति नहीं देता है।
इंडिया फाउंडेशन के निदेशक राम माधव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज हमें भले राजनैतिक स्वतंत्रता मिली हो लेकिन 5 लाख गांवों में रहनेवाले लोगों को आर्थिक, सामाजिक और नैतिक स्वतंत्रता की आवश्यकता है। इसके लिए सामाजिक आंदोलन चलाना होगा। जबतक दलित अपनी पहचान छिपाता रहेगा तबतक समानता की बात बेमानी है। समाज को दलितों के प्रति सोच को बदलना होगा। आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि आरक्षण अतीत की गलतियों को सुधारने के लिए किया गया संवैधानिक प्रावधान है। उन्होंने ऐसे लोकतंत्र की बात की जिसमें वास्तव में सबको सम्मान मिले, सबकी सहभागिता रहे तथा सभी समृद्ध बने। सबके सत्ता में सहभागिता की बात उन्होंने कही। उन्होंने गांधीजी के मृत्यु के तीन दिन पूर्व लिखी बातों पर अमल करने की आवश्यकता बताई।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो0 विवेक कुमार, प्रख्यात चिंतक एवं पत्रकार सीके राजू, सुनिता त्रिपाठी, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. रतन लाल समेत कई विद्वानों ने इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में अपने पत्र प्रस्तुत किये। छह तकनीकी सत्रों में 70 पेपर की प्रस्तुति हुई जिसमें 55 पेपर दलित समुदाय के शोधार्थियों द्वारा प्रस्तुत किए गए। मंच का संचालन करते हुए कार्यक्रम के संयोजक सचिव एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डाॅ. संजय पासवान ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार की आवश्यकता बताई। चिति के प्रांत संयोजक कृष्णकांत ओझा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख स्वांत रंजन जी, प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय मंत्री रामाशीष सिंह, रा0स्व0संघ के क्षेत्र कार्यवाह डाॅ0 मोहन सिंह, बिहार महादलित आयोग के अध्यक्ष हुलास मांझी, पटना विश्वविद्यालय के प्रो0 पूनम सिंह, प्रो. समीर शर्मा, प्रो. रामाशंकर आर्य, डाॅ. रवीन्द्र कुमार, प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री उषा किरण खान, प्रो0 शत्रुघ्न प्रसाद समेत कई प्रमुख प्रबुद्ध नागरिकों की उपस्थिति इस कार्यक्रम में थी।