डॉ अंबेडकर और श्री गुरु जी
ट्विटर पर The Dalit Voice नाम से एक हैंडल है। उसने 13 अप्रैल 2023 को थ्रेड लिखा कि 7 सितम्बर 1949 को श्री गुरूजी
ने दिल्ली में डॉ. अंबेडकर से मुलाकात की थी जिसमें उन्होंने डॉ. अंबेडकर से कहा कि वह मराठों को रोकने में ब्राह्मणों की मदद करें नहीं तो उनका यानी ब्राह्मणों का शासन समाप्त हो जायेगा। इस
ट्विटर हैंडल ने आगे लिखा कि इस पर डॉ. अंबेडकर नाराज हो गए और उन्होंने जवाब दिया कि मैं कैसे भूल सकता हूँ कि पेशवाई के दिनों में आप लोगों (ब्राह्मणों) ने कितना सताया है। बतौर ट्विटर हैंडल, उन्होंने श्री गुरु जी से कहा, “आपकी टीम में सभी ब्राह्मण है जिसमें न तो मराठा है और न ही महार। आपकी टीम एक जहरीले वृक्ष की तरह है। अगर आप एक संस्था बनाना चाहते हैं तो उसे जाति उन्मूलन बनाइये। अंत में इस ट्विटर हैंडल ने बताया कि यह बातें उसनें सोहनलाल शास्त्री के माध्यम से कही है जोकि उस बातचीत के दौरान वहां मौजूद थे।
डॉ. सोहनलाल शास्त्री 1911 में पंजाब में पैदा हुए और पढाई करने के बाद, वह 13 वर्षों तक अध्यापन करते रहे फिर 1947 से 1970 तक विधि मंत्रालय में अनुवादक के रूप में कार्यरत रहे। अर्थात जब डॉ. अंबेडकर देश के पहले विधि मंत्री बने तब सोहनलाल शास्त्री को नौकरी मिली थी। उन्होंने एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक ‘बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर के संपर्क में पच्चीस वर्ष’ है। इसी पुस्तक में उन्होंने इस मुलाकात का जिक्र किया है।
सोहनलाल शास्त्री की बातों में कितनी सच्चाई है इसका कोई तथ्य उपलब्ध नहीं है। दरअसल, न तो श्री गुरूजी यह कह सकते है कि ब्राह्मणों का शासन समाप्त हो जायेगा और न ही डॉ. अंबेडकर संघ को जहरीला बता सकते हैं। अतः यह कहानी मनगढ़ंत अधिक नजर आती है। इसके पीछे कई कारण हैं जैसे सबसे पहले यह जानने की जरुरत है कि डॉ. अंबेडकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आपसी रिश्ता कैसा था? इस सन्दर्भ में एच.वी. शेषाद्रि और दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा लिखित एक पुस्तक ‘एकात्मकता के पुजारी- डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ‘ बेहद महत्वपूर्ण है। इस पुस्तक के अनुसार डॉ. अंबेडकर कई बार संघ के संपर्क में आ चुके थे। सबसे पहले वह 1935 में पुणे में महाराष्ट्र के पहले संघ शिविर में आये थे। तब उनकी डॉ. हेडगेवार से भी भेंट हुई थी, फिर वकालत के सिलसिले में जब डॉ. अंबेडकर दापोली (महाराष्ट्र) गए तो भी वह वहां की संघ शाखा
का अवलोकन करने गए थे। इसी प्रकार 1937 की करहाड़ शाखा (महाराष्ट्र) के विजयादशमी उत्सव पर बाबासाहब ने भाषण भी दिया था। दत्तोपंत ठेंगडी जी के अनुसार वहां के स्थानीय बुजुर्गों को उनके भाषण का स्मरण था।
इसके बाद, डॉ. अंबेडकर द्वारा 1939 में पूना के संघ शिक्षा वर्ग में जाने का उल्लेख मिलता है। पुस्तक के अनुसार शाम के समय डॉ. अंबेडकर आये थे। उस दौरान डॉ. हेडगेवार भी वहां मौजूद थे। तब लगभग 525 पूर्ण गणवेशधारी स्वयंसेवक इस वर्ग में थे। बातचीत के क्रम में डॉ. अंबेडकर ने पूछा कि इनमें से अस्पृश्य कितने है? डॉ. हेडगेवार ने कहा, आप खुद पूछ लीजिये।” फिर डॉ. हेडगेवार ने कहा कि हम यहाँ अस्पृश्य जैसा किसी को महसूस ही नहीं होने देते यदि आप चाहें तो जो भी उपजातियाँ हैं, उनका नाम लेकर पूछिए? तब डॉ. अंबेडकर ने कहा कि, “वर्ग में जो चमार, महार, मांग, मेहतर हो वे एक-एक कदम आगे आयें-“ऐसा कहते ही करीब सौ स्वयंसेवक आगे आ गए।
अतः डॉ. अंबेडकर का संघ के साथ कई वर्षों से संपर्क था। इसी पुस्तक में इस बात का भी जिक्र है कि 1953 में मोरोपंत पिंगले, बाबासाहब साठे और प्राध्यापक ठाकर ने औरंगाबाद में डॉ. अंबेडकर से मुलाकात की थी। तब डॉ. अंबेडकर ने संघ के बारे में ब्योरेवार जानकारी ली थी। जैसे शाखाएं कितनी है और संख्या कितनी रहती है? इस जानकारी के बाद खुद डॉ. अंबेडकर ने मोरोपंत पिंगले से कहा कि मैंने तुम्हारी ओटीसी देखी थी। तब जो तुम्हारी शक्ति थी, उसमें इतने वर्षों में जितनी प्रगति होनी चाहिए थी वैसी नहीं हुई। अब प्रगति धीमी दिखाई देती है। मेरा समाज इतने दिन प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं है।
खुद दत्तोपंत ठेंगडी की भी डॉ. अंबेडकर से चर्चा हुई थी। वह लिखते हैं कि- “धर्मान्तरण (बौद्ध धर्म में) के कुछ दिन पूर्व मैंने उनसे पूछा था, बीते समय में कुछ अत्याचार हुए तो ठीक है, लेकिन अब हम कुछ तरुण लोग जो कुछ गुण-दोष रहे होंगे, उनका प्रायश्चित करके नयी तरह से समाज रचना का प्रयास कर रहे है. यह बात आपके ध्यान में है क्या?” इसका जवाब डॉ. अंबेडकर ने दिया कि तुम्हारा मतलब आर.एस.एस. से है?” यानी उन्हें पता था कि दत्तोपंत ठेंगडी संघ के प्रचारक है। डॉ. अंबेडकर ने आगे कहा, “क्या तुम समझते हो मैंने इस बारे में विचार नहीं किया? संघ 1925 में बना। आज तुम्हारी संख्या 27-28 लाख है। ऐसा मानकर चलते है इतने लोगों को एकत्र करने में आपको 27-28 वर्ष लगे तो इस हिसाब से सारे समाज को इकठ्ठा करने में कितने साल लगेंगे।
उपरोक्त बातचीत और तथ्यों से तय है कि डॉ. अंबेडकर का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पुराना संपर्क था। वह संघ के संस्थापक सहित प्रचारकों के लगातार संपर्क में थे। बस उन्हें पूरे समाज में जल्द से जल्द बदलाव लाना था और यहीं उनका संघ से एकमात्र मतभेद था। संघ की अपनी एक कार्यविधि थी और धीरे-धीरे वह अपने लक्ष्य की और बढ़ रहा था। मगर डॉ. अंबेडकर तेजी से उसी लक्ष्य को पाना चाहते थे। यह मतभेद कोई दुश्मनी अथवा बैर रखने जैसे नहीं थे। यह सिर्फ वैचारिक अथवा कार्य करने के तरीके को लेकर थे जोकि डॉ. अंबेडकर के महात्मा गाँधी से भी रहते थे। अतः महापुरुषों के कथनों एवं कार्यशैली को बृहद स्तर पर देखे जाने की आवश्यकता है।
एक बात और यहां गौर करने वाली है कि डॉ. अंबेडकर के मुख्य अनुयायियों में वामनराव गोडबोले और पंडित रेवाराम कवाडे शामिल थे। इनमें से पंडित रेवाराम कवाडे को नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग के तृतीय वर्ष के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। पंडित कवाडे ने इस निमंत्रण को स्वीकार किया और वह समारोह में शामिल हुए। इस तथ्य का उल्लेख दतोपंत ठें
गडी ने अपनी पुस्तक ‘डॉ अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ में किया है।
डॉ. अंबेडकर के प्रशंसकों द्वारा उनकी 73वीं जयंती के निमित्त निकाले विशेषांक के लिए गुरूजी ने एक मार्मिक सन्देश भेजा था, जिसके कुछ अंश इस प्रकार है- “वन्दनीय डॉ अंबेडकर की पवित्र स्मृति को अभिवादन करना मेरा स्वाभाविक कर्त्तव्य है। उन्होंने अपने समाज की ‘छुओ मत’ की अनिष्ट प्रवृति से संलग्न सारी रूढ़ियों पर कठोर प्रहार किये, समाज को नयी समाज रचना करने का आह्वान किया। उनका यह कार्य असामान्य है। अपने राष्ट्र पर उन्होंने बड़ा उपकार किया है। यह उपकार इतना श्रेष्ठ है कि इससे ऋण मुक्त होना कठिन है।”
दत्तोपंत ठेंगडी जी के अनुसार जब भंडारा लोकसभा के लिए उपचुनाव की घोषणा हुई तो डॉ. अंबेडकर ने वहां से लड़ने का मन बनाया। इस सन्दर्भ उनके शुभचिंतकों की जो प्राथमिक बैठकें हुई उनमें दत्तोपंत जी भी शामिल थे। उनके अनुसार भंडारा जिले के स्वयंसेवकों ने डॉ. अंबेडकर के चुनाव में प्रचार भी किया था। मगर दुर्भाग्य से डॉ. अंबेडकर यह चुनाव हार गए थे।
अब रही बात डॉ. अंबेडकर की गुरूजी से मुलाकात का, तो यह ठीक है कि इन दोनों की दिल्ली में सितम्बर 1949 में मुलाकात हुई थी, इसका जिक्र दत्तोपंत ठेंगडी जी के अलावा धनंजय कीर ने अपनी पुस्तक ‘डॉ. अंबेडकर : लाइफ एंड मिशन’ में किया है। मगर दोनों ने इस बात का कोई संकेत नहीं किया कि दोनों में क्या बातचीत हुई? इतना जरुर है कि दत्तोपंत ठेंगडी जी ने अपनी पुस्तक ‘डॉ अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ में लिखा है कि यह मुलाकात संघ पर लगे प्रतिबन्ध के प्रयासों के सिलसिले में थी। इसी महीने की 23 तारीख को उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी हुई थी।
यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि महात्मा गाँधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के खिलाफ दंगे भड़क हुए थे। दरअसल, नाथूराम गोडसे चितपावन ब्राह्मण थे। इन दंगों का अध्ययन करने वाली कई लेखकों का कहना है कि यह दंगे कांग्रेस नेताओं द्वारा जानबूझकर हिन्दू महासभाई विशेषकर ब्राहमणों के खिलाफ किये गए थे। इसलिए हो सकता है कि इसका जिक्र गुरूजी ने अपनी बातचीत में डॉ. अंबेडकर से किया हो। मगर यह दंगे किसी जाति विशेष घटना के सन्दर्भ में नहीं हुए थे। चूंकि नाथूराम गोडसे एक ब्राहमण थे इसलिए कांग्रेस ने इसका राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए यह दंगे भड़काए थे। इसका सामाजिक छुआछुत अथवा अस्पृश्यता से कोई लेनादेना नहीं था। अतः सोहनलाल ने पेशवाई से लेकर ब्राहमणों के शासन सम्बन्धी जिन बातों का जिक्र किया है वह मिथ्या और झूठी अधिक नजर आती है।